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शिव और गुरु?

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"शिव आज भी गुरु हैं" आज से लगभग 15 वर्ष पहले जब मैं दीवारों पर यह लिखा देखता था तो मुझे जिज्ञासा तो होती थी लेकिन इतनी भी नहीं की मैं किसी शिव-चर्चा में जाकर विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल करूँ। हालाँकि दोचार मिनट कभी सुन लेता था लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाता था। वो तो मेरे ऊपर जब दुखों का पहाड़ टूटा तब मेरी तलाश प्रारंभ हुई। न जाने कितने आध्यात्मिक आयोजनों में गया, कई गुरु भी बनाये, कई तीर्थस्थानों का भी भ्रमण किया, लेकिन मेरी मानसिक या भौतिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। सभी पंथ खुद को बड़ा और दूसरों को छोटा साबित करने में लगे हैं। ये २००९ की बात है, मरे गाँव के मुखियाजी ने अपने दरवाजे पर शिव-चर्चा का आयोजन किया था और मुझे भी आमंत्रित किया था। पहली बार मैंने पूरी बात ध्यान से सुनी और मुझे लगा कि यही एक रास्ता है। लेकिन उस दिन भी मैंने अपने नाम की घोषणा नहीं करवाई, क्योंकि उस समय मैं एक गुरु से जुड़ा हुआ था। हालाँकि मेरा झुकाव पूरी तरह शिव-शिष्यता की ओर हो गया था, लेकिन फिर भी न जाने क्यों मैं निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा था। उसके बाद एकदिन, मेरे उस गुरूजी के एक अन्