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ग्रन्थ किनके लिए हैं?

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क्या ग्रन्थ गलत हैं? क्या पंथ गलत हैं? क्या सारे शरीरधारी गुरु गलत हैं? साहबश्री ने एक उदाहरण दिया है... कोई भैंस किसी किसान का खेत चर रही है, किसान निवेदन करता है, हे महिष्मति देवी, आप मेरा खेत मत चरिये, मेरे परिवार के बारे में सोचिये, महाजन का कर्ज है, आगे बेटी का विवाह है, वगैरह, वगैरह। क्या भैंस पर कोई फर्क पड़ेगा? नहीं, क्योंकि उसके पास इतनी समझ नहीं है! ठीक उसी तरह, सरे ग्रंथ, पंथ, आदमियों के लिए हैं, जानवरों के लिए नहीं! आज का आम इंसान इतना नीचे गिर चुका है कि उसे आदमी तो क्या जानवर कहना भी मुश्किल है। इसीलिए ग्रंथों की बात इनकी समझ से परे है। इसीलिए साहबश्री ने कहा है, "पहले आदमी तो बन जाएँ" ... नहीं ग्रन्थ या पंथ गलत नहीं हैं। न ही शरीरधारी गुरु गलत हैं। बस उन्हें "समझने की योग्यता" हमारे पास नहीं है। हमारी चेतना उस तल के आस-पास भी नहीं है, जिस तल से ये बातें कही जा रही हैं। मानवीय चेतना का अधःपतन हो चुका है, जिसके पुनरुत्थान हेतु, प्रबल गुरूत्व की आवश्यकता है। जिस प्रकार गहरी खाई में गिर चुकी किसी गाड़ी को टोचन से नहीं क्रेन से ही निकाला जा सकता है, ठीक उसी