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Showing posts from September, 2018

बंदर की याद

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एक बार एक चालाक गुरु ने एक सीधे सादे शिष्य को फंसा लिया, यह कहकर कि तुम मेरी सेवा करो, बदले में मैं तुम्हें एक मंत्र दूंगा, जिसे 108 बार जप लेने से ही तुम्हें ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी। शिष्य ने जीजान से अपने गुरु की सेवा की, लेकिन जब भी वो मन्त्र देने का आग्रह करता, गुरुजी कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देते। अंत में ऐसी स्थिति आयी कि अब गुरुजी का अंत समय आ गया। चेला अत्यंत अधीर हो उठा। उसने गुरुजी को पकड़ लिया कि, अब तो मन्त्र दे ही दीजिये, नहीं तो मैं आपको मरने नहीं दूंगा। जिंदगी भर मैंने आपकी सेवा की है। अब तो आपको मन्त्र देना ही पड़ेगा। गुरुजी बोले, ठीक है मैं तुम्हें मन्त्र देता हूँ, लेकिन वादा करो कि मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही जपोगे। और इस मंत्र के साथ शर्त यह है कि, इसे जपने के समय "बन्दर की याद नहीं आनी चाहिए"। शिष्य अत्यंत प्रसन्न हुआ और बोला कि बिल्कुल नहीं आएगी बन्दर की याद। भला मन्त्र जप से बन्दर का क्या सम्बन्ध? आप मन्त्र तो दीजिये। उसके बाद गुरुजी ने उसे कोई भी एक मन्त्र दे दिया। कुछ ही दिनों में गुरुजी चल बसे। शिष्य ने श्रद्धा पूर्वक गुरुजी का अंतिम संस्कार क

दुःख का कारण

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किसी भी दुःख का कारण, मेरी समझ से है- अनुचित अपेक्षा। जिसका कारण है, समझ की कमी। उचित-अनुचित का निर्णय करने के लिये, विवेक या विकसित चेतना या समझ, की जरुरत है। भौतिक गुरु ज्ञान देने की कोशीश कर सकते हैं, लेकिन ग्रहण करने की क्षमता तो केवल शिव-गुरु की दया से ही मिलती है। ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता ही समझ है। हमारे आपके पास जितनी भी समझ (perception) है, उसका एक मात्र स्रोत है, सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा (the Supreme Dynamic Consciousness), जिसे हम गॉड, अल्लाह, शिव या ईश्वर कहते हैं। हमारी आपकी चेतना का स्रोत होने की वजह से गुरू हैं ही। जरुरत है तो सिर्फ एक सम्बन्ध जोड़ने की। एक रिश्ता, गुरू शिष्य का रिश्ता।। परमगुरू शिव की दया से, साहबश्री हरीन्द्रानंदजी के माध्यम से, मानवजाति को 3 सूत्र मिले हैं, जिनकी सहायता से हम और आप शिव-शिष्य बन सकते हैं। 1. दया माँगना- "हे शिव आप मेरे गुरू हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये"। (मन ही मन) 2. चर्चा करना- दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "मेरे गुरू शिव हैं, आपके भी हो सकते हैं"। 3. नमन करना- अपने गुरू को प

स्वास्थ्य और चर्चा

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स्व में स्थित होना ही स्वास्थ्य है। भू भुवः स्व स्थूल सूक्ष्म कारण इस प्रकार स्व का अर्थ हुआ वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा जो मेरे होने का कारण अथवा मेरा मूल स्वरुप है। अब अगर मेरा ध्यान स्थूल पर है तो मैं स्व में स्थित अर्थात् स्वस्थ नहीं हूँ। आज तथाकथित आधुनिक विज्ञान का सारा ध्यान "शव" पर ही है, "शिव" पर नहीं। स्थूल पर ही है सूक्ष्म पर नहीं। महामानव हैनिमैन ने सूक्ष्म शरीर के महत्त्व को पुनः प्रतिष्टित किया। सूक्ष्म दवाओं के प्रयोग द्वारा सूक्ष्म शरीर को व्यवस्थित करने का प्रयास प्रारम्भ हुआ। हैनिमैन साहब मानव जाति के इतिहास के मील के पत्थर साबित हुए। अब देखिये अगर कोई मरीज अपनी बीमारी को पकड़ लिया है और हर आने जाने वाले के साथ अपनी बीमारी की ही चर्चा करता है, तो उसका ध्यान हमेशा बीमारी पर ही बना रहेगा और वह रोगस्थ रहेगा, स्वस्थ नहीं। उपाय? हमें अपना ध्यान रोग से हटा कर स्व पर ले जाना होगा। कैसे? ध्यान का सम्बन्ध चर्चा से है। अगर हम समस्याओं की ही चर्चा में लगे हैं तो हमारा ध्यान समाधान पर कभी नहीं जा सकता। हम जिस चीज की चर्चा करते हैं, हमारा ध्यान उस चीज

धर्म, संस्कृति और संप्रदाय

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अक्सर लोग कहते हैं कि सनातन धर्म। जैसे कि कई धर्मों में से एक धर्म, सनातन धर्म भी है। कुछ लोग समझते हैं कि, हिदु भी एक धर्म है। वास्तव में सनातन धर्म नहीं, धर्म सनातन होता है। धर्म का मतलब क्या है? "धारयति इति धर्मः" अर्थात्, "जो धारण किया जाता है, वही धर्म है"। इसका तात्पर्य गुण से भी है और फर्ज यानि कर्तव्य से भी है। जैसे कि अग्नि का धर्म है जलाना, पानी का धर्म है भिंगाना और हवा का धर्म है सुखाना। धर्म का तात्पर्य कर्तव्य से भी है। मानव का एकमात्र धर्म है, मानवता। अगर 4 कुत्ते एक जगह हैं और उनमें से 1 कुत्ता बहुत तगड़ा है। बाँकी 3 कुत्ते कमजोर हैं। तभी उनके बीच कोई रोटियां डाल कर चला जाता है, तो जो सबसे तगड़ा कुत्ता है, वह अकेले सारी रोटियां खा जायेगा। भले ही उसने अभी कुछ देर पहले ही खाया है और बाँकी कुत्ते बहुत समय से भूखे हैं। वहीँ अगर 4 आदमी बहुत समय से भूखे हैं और उनके बीच 1 आदमी के लायक ही खाना पहुँचता है, तो जो सबसे मजबूत आदमी है, वह सबसे कमजोर आदमी को सबसे पहले खिलायेगा। अगर उसमें मानवता है तो। यही मानवता, मानव का धर्म है और यह नियम सनातन है। सनातन का अर्थ हो