तौहीद (एकेश्वरवाद) क्या है?
तौहीद (एकेश्वरवाद) क्या है? दृश्य हो या अदृश्य, साकार हो या निराकार, हर रूप में उसी विश्वरूप (ईश्वर) को देखना ही एकेश्वरवाद (तौहीद) है। "सकल राममय यह जग जानी" इसीलिए जिस स्वरूप से भी प्रेम हो, पूजा केवल ईश्वर की ही होती है। केवल अल्पविकसित चेतना के लोग ही किसी की पूजा पद्धति पर निषेध लगा सकते हैं, क्योंकि उन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि हर व्यक्ति की चेतना का स्तर और हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग-अलग होता है, इसीलिए हर व्यक्ति ईश्वर के एक ही स्वरूप के प्रति आकर्षित नहीं हो सकता। किसी पर भी अपनी पसंद जबरदस्ती थोपना केवल और केवल पागलपन है। अध्यात्म और संस्कृति से सुसम्पन्न भारत के लोगों को कबीलाई पागलपन की नकल करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जिनके पूर्वजों ने किसी मजबूरी के तहत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का त्याग किया था, उन्हें घर वापसी करनी चाहिए, अन्यथा किसी कल्पनालोक की आशा में यथार्थ लोक को नष्ट होते देखने की मूर्खता ही एकमात्र विकल्प बचेगा। "स्वरग नरक एही जग माही, करमहीन नर पावत नाहीं" प्रेम की मनोदशा ही स्वर्ग है और घृणा की मनोदशा ही नर्क है। "दया धरम का म