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ज्ञान और समझ

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जिज्ञासा: वागात्मक ज्ञान और बोधात्मक ज्ञान में क्या अंतर है? प्रयास: जहाँ तक मेरी समझ है, ज्ञान जब बोध में उतर जाए, अर्थात् मन समझ जाये तभी वह कारगर होता है और इसी को बोधात्मक ज्ञान कहते हैं। बोल रहे हैं पर समझ नहीं रहे हैं, इसे वागात्मक ज्ञान कहते हैं। जैसे कि "शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, 'लोभ' से उसमें फंसना नहीं", सभी तोते रट रहे थे लेकिन समझ नहीं रहे थे, इसीलिए "लोभ" में फंस गए। अब ये वाक्य तोतों के लिए वागात्मक ज्ञान था, लेकिन जिस व्यक्ति ने तोतों को यह वाक्य रटाया था उसके लिये बोधात्मक था। तो ज्ञान तो ज्ञान ही है, निर्भर करता है, "ग्रहण करने की पात्रता" पर। मेरे विचार से ग्रहण करने की पात्रता (समझदानी का कटोरा) को ही "समझ" कहते हैं। तो वास्तविक ज्ञान जो बोध में उतर गया, समझ में आ गया, उसे समझ कह सकते हैं, लेकिन जो ज्ञान अभी जानकारी के स्तर पर ही है, सूचना के तल पर ही है, बोध में नहीं उतरा, उसे समझ नहीं कह सकते। अब हर आदमी का समझदानी का कटोरा एक साइज़ का नहीं होता। यानि कि हर आदमी की चेतना का स्तर (level of perception) एक ज