कर्म-फल का विज्ञान
कहा जाता है कि कर्मों के फल कभी क्षय नहीं होते और हमारे जीवन के सुख-दुःख, हमारे अपने कर्मों के ही फल हैं। लेकिन कर्म की प्रक्रिया के पीछे भी रहस्य है। हमारे कर्म, हमारे अंतर्मन या अवचेतन मन की बनावट (Constitution of sub-conscious mind) पर निर्भर करते हैं। हमारे मनोभाव, हमारे कर्मों को नियंत्रित करते हैं। जैसी मनोदशा होगी, मन जिस दिशा में उन्मुख होगा, कर्म भी उसी दिशा में उन्मुख होंगे। मन की दशा और भाव बनते हैं विचारों की आवृत्ति से, विचारों की संगति से। हम जिस विचार की भी "चर्चा" बार बार करते हैं, उस विचार की आवृत्ति मन में बार-बार होती है और वह विचार घनीभूत होकर भाव में बदल जाते हैं। "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"। अगर इसी विचार की चर्चा बार बार की जायेगी तो यह भाव में बदल जायेगा। इसीलिये कहा गया है कि, "दूसरों को शिव के गुरु स्वरुप से जोड़ने के उद्देश्य से की गयी चर्चा, 'शिष्य-भाव' जागरण की उत्तम विधा है"। लेकिन हम दिन रात अनावश्यक और अनुत्पादक और यहाँ तक कि हानिकारक चर्चाओं में व्यस्त रहते हैं, जो कि हमारे अवचेतन मन की संरचना पर बुरा प