अंधों के लिये आइना
एक व्यक्ति ने कहा कि गीता को अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक घोषित कर देना चाहिये। इस पर कुछ लोगों ने कहा, पहले राष्ट्रीय पुस्तक तो हो जाय। मेरे विचार से ... पहले आत्मीय पुस्तक तो हो जाय। पहले खुद तो पढ़ लें और इसके गूढ़ रहस्य को समझ लें। शरीर रूपी रथ में, 5 ज्ञानेन्द्रियाँ रूपी घोड़ों को, मन रूपी लगाम से, संचालित करने वाले सारथी के रूप में परमात्मा, गुरुकार्य ही तो कर रहे है। अर्जुन के रूप में जीवात्मा, मन रूपी गांडीव से, विचार रूपी तीरों को चलाकर, सड़े-गले प्रत्यारोपित विचारों को काट सकता है, अगर वह तैयार हो जाय परमात्मा को अपना गुरु मानकर, उसके आदेशानुसार, वैचारिक महाभारत में उतरने के लिये। कितने लोग गीता के इस तात्पर्य को समझते हैं? उसी तरह राम यानि शिव-भाव में स्थित जीवात्मा, जीव-भाव में स्थित जीवात्मा के रूप में रावण पर विजय तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह गुरु रूप में परमात्मा, अर्थात शिव की दया का आश्रय ले। मानव शरीर में ही सहस्त्रार पर कैलाश, अनाहत पर अयोध्या, स्वाधिष्ठान पर रामेश्वरम और मूलाधार पर लंका है। कितने लोग राम+अयन अर्थात राम के घर को, इस परिप्रेक्ष्य में देखते हैं? लोग अपने नाम में