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Showing posts from July, 2018

Why Namah Shivaya Only केवल नमः शिवाय क्यों

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एक मित्र ने मैसेंजर पर पूछा ॐ नमः शिवाय क्यों नहीं? केवल नमः शिवाय क्यों? मैंने कोशीश की गुरू दया से... इस सवाल के कई जवाब हैं। मन्त्र विज्ञान में जायेंगे तो बहुत लंबा हो जायेगा। संक्षेप में मैं ये जानता हूँ कि श्वास प्रश्वास पर किये जाने वाले किसी मन्त्र में ॐ नहीं लगता है। सबसे बड़ी बात परिणाम जिससे मिलता है वो करेंगे। लोगवा जो कहता है करके देख लिये हैं। हज़ारों सालों से ॐ चल रहा है, परिणाम? सारे मन्त्र कीलित (coded) हैं। उनका उत्कीलन (decoding) करने के बाद ही वो परिणाम देता है। आप श्वास लेने समय नमः और छोड़ते समय शिवाय कर के देखिये। आराम आराम से, गिनने की कोई जरुरत नहीं। वैसे भी ॐ तो सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्पंदन है, जो साध्य है साधन नहीं। शरीर या मन इसका उच्चारण नहीं कर सकता और जीवात्मा तो स्वयं ॐ कार ही है। ये एक क्लिष्ट विषय है, इस पर मिलकर ही बात हो सकती है। वैसे भी हम शिष्यों को ज्ञान देने का नहीं, ज्ञान के परम स्रोत से जोड़ने का और जुड़ने का आदेश मिला है। उद्देश्य मन्त्र को सिद्ध करना नहीं है। उद्देश्य है अपने गुरू को प्रणाम करने की कोशीश करना। और साहबश्री ने कहा है, "चाहें तो

Father and Teacher बाप और मास्टर

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एक मास्टर साहब, जो प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते थे अपने बेटे के साथ स्कूल निकल रहे थे। बेटा भी उन्हीं के स्कूल में पढ़ता था। तभी मास्टर साहब की बीवी बोली कि, ब्लाउज का कपड़ा और नाप लेते जाइये, रास्ते में दर्जी को देते हुए चले जाइयेगा। मास्टर साहब ने कपड़ा और नाप ले तो लिया लेकिन, जल्दीबाजी में दर्जी को देना भूल गए और स्कूल पहुँच गए। स्कूल में जब पढ़ा रहे थे, तभी उनके बेटे को याद आया। बोला, मम्मी ने जो ब्लाउज का कपड़ा दिया था, दर्जी को देने, आपने तो दिया ही नहीं। मास्टर साहब बोले, जाते समय दे देंगे। बेटा बोला, लेकिन मम्मी तो बोली थी कि, देते हुए जाइयेगा! कोई बात नहीं, जाते समय दे देंगे! बेटा- आते समय दे देते तो... मास्टर साहब को गुस्सा आ गया। बोले, अबे गधे, यहाँ मैं तुम्हारा बाप नहीं हूँ, शिक्षक हूँ... तो जो शिव भगवान हैं, वही गुरु भी हैं। परमपिता भी और परमगुरु भी। हम उनके सामने क्या बनकर जाते है, किस भाव में जाते हैं, परिणाम उसपर निर्भर करता है। रह गयी बात कृपा और दया की, तो जहाँ तक हम कुछ कर सकते हैं, वहाँ तक कृपा और जहाँ हम कुछ कर ही नहीं सकते, वहाँ दया की जरुरत होती है। वही शिव, भगवान के

Prosperity समृद्धि

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अक्सर बाहर से समृद्ध दिखने वाले लोग, अंदर से दरिद्र होते हैं। ऐसा नहीं है कि बाहर से समृद्ध दिखने वाले सभी लोग अंदर से दरिद्र होते हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में ऐसा ही होता है। आखिर क्यों? क्योंकि लोग समझते हैं कि, केवल आर्थिक समृद्धि से ही सुख-शांति पायी जा सकती है? मैं आर्थिक समृद्धि के महत्व से इनकार नहीं कर रहा हूँ। अपनी जगह यह भी आवश्यक है और इसके लिए भी प्रयास करना गलत नहीं है। लेकिन, जरा सोचिये, केवल आर्थिक विकास कर लेने से ही जीवन की सारी समस्याएं ख़त्म हो जाती हैं? क्या हमारे "विचार" भी समृद्ध नहीं होने चाहिये? क्या हमारे "भाव" भी समृद्ध नहीं होने चाहिये? क्या हमारा "अंतर्मन" भी समृद्ध नहीं होना चाहिये? क्या आतंरिक समृद्धि के बगैर, आत्मसंतुष्टि संभव है? मेरे विचार से तो बिना "सम्यक" (आतंरिक और बाह्य) समृद्धि के हमारी दरिद्रता समाप्त नहीं हो सकती। तो सम्यक समृद्धि पाने के लिये, हम क्या करें? इसके लिये हमें "सम्यक ज्ञान" की जरुरत है जो सिर्फ एक सबल गुरु दे सकते हैं, जिनमें हमारे स्थूल और सूक्ष्म को प्रभावित करने की शक्ति हो। जो ह

जब मैं एक गुरुभाई से मिला

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विगत 1 अक्टूबर 2015 को मैं एक गुरुभाई से मिला। नाम है सुरेन्द्र गुरुभाई। घर-पोठिया, फारबिसगंज। उनसे मिलने की इच्छा पिछले 15-20 दिनों से जोर मार रही थी। वैसे तो पिछले एक साल में, मैं उनसे कम से कम 30 से 40 बार मिल चुका हूँ। लेकिन कभी भी अकेले उनसे बात नहीं हुई थी। हर बार किसी न किसी साप्ताहिक में या छोटे-बड़े कार्यक्रमों में। पता नहीं क्यों पिछले कुछ दिनों से उनसे अकेले में मिलने की इच्छा जोर पकड़ रही थी। तो पिछले 1 अक्टूबर को जब मैं कटिहार से लौट रहा था, तो मेरी बाइक उनके घर की ओर मुड़ गयी। जब गाड़ी मुड़ ही गयी, तो मेरे मन में ये चलने लगा कि, उनसे बात क्या की जायेगी? तभी मेरे मन में 2 जिज्ञासाएँ आयी, जो पिछले 2-3 दिनों से मेरे मन में चल रही थीं। जब मैं उनके घर पहुंचा, तो मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो मुझे घर पर मिलेंगे। दिन डूबने में 1 घंटा से भी कम समय बचा था और इस वक्त वो कहीं न कहीं गुरुकार्य कर रहे होते हैं, या घर से निकल चुके होते हैं। मुझे आश्चर्य हुआ यह देखकर कि, सुरेन्द्र भैया और उनकी पत्नी मिलकर बांस के बर्तन बना रहे थे। क्योंकि मैं सोचता था कि, भैया अपना सारा काम-धंधा छोड़कर केवल

Who May Be A Guru गुरु कौन हो सकते हैं

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गुरु वही हो सकते हैं, जिनमें गुरूत्त्व हो। ईश्वर से अधिक गुरूत्त्व किसमें हो सकता है? गुरु का एक अर्थ भारी भी होता है। जो सब पर भारी है, उसे ही तो ईश्वर कहते हैं। जो गुर (रहस्य) सिखला दे, उसे ही गुरु कहते हैं। जगत के सारे रहस्यों के ज्ञाता तो केवल ईश्वर ही हैं। जिसके पास ज्ञान है, वही गुरु हो सकते हैं। तीनों कालों का ज्ञान रखनेवाले, सर्वज्ञ तो ईश्वर ही हैं। तो ईश्वर जो कि अंर्तयामी हैं, सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा हैं, अंतर्ज्ञान और बाह्यज्ञान दोनों के ज्ञाता और दाता हैं, निश्चय ही गुरु भी हैं। वैसे भी गुरु को भगवान जैसा कहा गया है। जो भगवान जैसा है, अगर वह गुरु है, तो स्वयं भगवान गुरु क्यों नहीं? एक ही व्यक्ति अलग अलग भूमिकाओं में पिता, पुत्र, मामा, चाचा, शिक्षक इत्यादि हो सकते हैं। तो वह घट घट वासी, अविनाशी, विश्वरूप, परमात्मा, जो अनंत रूपों में हैं, उनका एक रूप गुरु भी है। ।।या शक्ति, शिवस्य शक्ति।। शक्तियां जो भी हैं, ईश्वर की शक्तियां हैं। परमात्मा की इच्छाएं ही उनकी शक्तियां हैं। परमात्मा की इच्छाओं को आदेश मानकर, उसपर चलने की कोशीश करना ही शिव-शिष्यता है। परमात्मेच्छा को स

sadhya aur sadhan साध्य और साधन

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कुछ लोग कहते हैं साधन से कोई फर्क नहीं पड़ता, साध्य सही होना चाहिये। खासकर आध्यात्मिक चर्चा जब भी होती है, कुछ लोगों के पास रटा रटाया जवाब होता है, अरे जाना तो वहीँ है न, मार्ग और साधन से क्या फर्क पड़ता है? बहुत दिनों तक मैं भी ऐसा ही विचार रखता था। लेकिन जरा सोचिये। एक पिता बहुत बीमार है और उसका पुत्र देश के दूसरे कोने में रहता है। एक चिठ्ठी लिखी जाती है और उसे साधारण डाक से भेज दिया जाता है। चिठ्ठी रास्ते में गुम हो जाती है या पहुँचती भी है तब, जब पिता की मृत्यु हो जाती है। वहीँ चिठ्ठी की जगह तार किया जाता है, मेल किया जाता है या सीधे फोन कर दिया जाता है। क्या परिणाम एक ही होगा? एक और उदहारण लेते हैं। किसी को गुवाहाटी से दिल्ली जाना है। वह बैलगाड़ी से चलता है, या रेलगाड़ी से चलता है, या हवाई जहाज से चलता है। क्या परिणाम एक ही होगा? अगर मंजिल दिल्ली की जगह अमेरिका हो, या अगर मंजिल अंतरिक्ष में जाना हो? हमने भौतिक जीवन में अपने साधन लगातार बदले हैं, लेकिन बात जब आध्यात्मिक साधन की हो, तो फिर वही रटा रटाया जवाब !!! हद है। क्या यह बैकवर्ड सोच नहीं है? अधिकाँश लोगों की यही हालात है। इनमे