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आदमी निरुपाय है लेकिन...

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मनुष्य जो चाहता है, वो हो नहीं पाता और जो नहीं चाहता वो हो जाता है। जैसे कि मनुष्य बीमार नहीं पड़ना चाहता, मरना नहीं चाहता, अपनों से दूर नहीं होना चाहता, दुखी नहीं होना चाहता, लेकिन होता क्या है? आप किसी को शिव-शिष्य बनाना चाहते हैं, लेकिन कई लोग भगवान शिव को अपना गुरु मानते ही नहीं। जो मानते भी हैं, तो उनमें से अनेक तीनों सूत्रों का पालन नहीं करते। तीनों सूत्रों का पालन करने वालों में से भी कई लोग प्रशंसा पाने के उद्देश्य से, वाहवाही लूटने के उद्देश्य से, सम्मान पाने के उद्देश्य से, प्रमुखता पाने के उद्देश्य से या धन कमाने के लोभ से, करते हैं। मंशा बदल जाने की वजह से दिशा बदल जाती है और दिशा बदल जाने से दशा बदल जाती है। आप चाहते हैं कि ऐसा न हो, लेकिन चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते और खुद को निरुपाय की अवस्था में देखते हैं। ऐसी अनेक स्थितियां हैं, या कहिये कि, हर जगह, हर स्थिति में आदमी निरुपाय ही है। जैसे कि, आदमी घर से निकलता है कहीं जाने के लिए, लेकिन सुरक्षित पहुंचेगा कि नहीं, यह केवल उसके हाथ में नहीं है। अर्थात, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने अपने नौकर से सही ही कहा था, "आदमी निरुप