अंधों के लिये आइना
एक व्यक्ति ने कहा कि गीता को अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक घोषित कर देना चाहिये।
इस पर कुछ लोगों ने कहा, पहले राष्ट्रीय पुस्तक तो हो जाय।
मेरे विचार से ...
पहले आत्मीय पुस्तक तो हो जाय।
पहले खुद तो पढ़ लें और इसके गूढ़ रहस्य को समझ लें।
शरीर रूपी रथ में, 5 ज्ञानेन्द्रियाँ रूपी घोड़ों को, मन रूपी लगाम से, संचालित करने वाले सारथी के रूप में परमात्मा, गुरुकार्य ही तो कर रहे है।
अर्जुन के रूप में जीवात्मा, मन रूपी गांडीव से, विचार रूपी तीरों को चलाकर, सड़े-गले प्रत्यारोपित विचारों को काट सकता है, अगर वह तैयार हो जाय परमात्मा को अपना गुरु मानकर, उसके आदेशानुसार, वैचारिक महाभारत में उतरने के लिये।
कितने लोग गीता के इस तात्पर्य को समझते हैं?
उसी तरह राम यानि शिव-भाव में स्थित जीवात्मा, जीव-भाव में स्थित जीवात्मा के रूप में रावण पर विजय तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह गुरु रूप में परमात्मा, अर्थात शिव की दया का आश्रय ले।
मानव शरीर में ही सहस्त्रार पर कैलाश, अनाहत पर अयोध्या, स्वाधिष्ठान पर रामेश्वरम और मूलाधार पर लंका है। कितने लोग राम+अयन अर्थात राम के घर को, इस परिप्रेक्ष्य में देखते हैं?
लोग अपने नाम में मो. लगाते हैं, लेकिन क्या वो समझते हैं कि जिसे अल्लाह से मोहब्बत है, वही मुहम्मद हो सकता है? मुहब्बत में तो लोग देना चाहते हैं! लेना नहीं। लोभ या भय का प्रेम में क्या स्थान?
इसिलिये कहा गया है कि, "नासमझों के लिये किताबें उसी तरह हैं, जिस तरह अंधों के लिये आइना"।
हद तो यह है कि, वे लोग भी किताबों के लिये लड़ते हैं, जो लोग कभी किताब नहीं पढ़ते हैं।
नहीं, किताबें बुरी नहीं हैं। हमारी "समझ" अच्छी नहीं है। हमारी चेतना का स्तर (level of perception) बहुत नीचे चला गया है। यह स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे कि, "भैंस के आगे बीन बजाय, भैंस करे पगुराय"...
इस पर कुछ लोगों ने कहा, पहले राष्ट्रीय पुस्तक तो हो जाय।
मेरे विचार से ...
पहले आत्मीय पुस्तक तो हो जाय।
पहले खुद तो पढ़ लें और इसके गूढ़ रहस्य को समझ लें।
शरीर रूपी रथ में, 5 ज्ञानेन्द्रियाँ रूपी घोड़ों को, मन रूपी लगाम से, संचालित करने वाले सारथी के रूप में परमात्मा, गुरुकार्य ही तो कर रहे है।
अर्जुन के रूप में जीवात्मा, मन रूपी गांडीव से, विचार रूपी तीरों को चलाकर, सड़े-गले प्रत्यारोपित विचारों को काट सकता है, अगर वह तैयार हो जाय परमात्मा को अपना गुरु मानकर, उसके आदेशानुसार, वैचारिक महाभारत में उतरने के लिये।
कितने लोग गीता के इस तात्पर्य को समझते हैं?
उसी तरह राम यानि शिव-भाव में स्थित जीवात्मा, जीव-भाव में स्थित जीवात्मा के रूप में रावण पर विजय तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह गुरु रूप में परमात्मा, अर्थात शिव की दया का आश्रय ले।
मानव शरीर में ही सहस्त्रार पर कैलाश, अनाहत पर अयोध्या, स्वाधिष्ठान पर रामेश्वरम और मूलाधार पर लंका है। कितने लोग राम+अयन अर्थात राम के घर को, इस परिप्रेक्ष्य में देखते हैं?
लोग अपने नाम में मो. लगाते हैं, लेकिन क्या वो समझते हैं कि जिसे अल्लाह से मोहब्बत है, वही मुहम्मद हो सकता है? मुहब्बत में तो लोग देना चाहते हैं! लेना नहीं। लोभ या भय का प्रेम में क्या स्थान?
इसिलिये कहा गया है कि, "नासमझों के लिये किताबें उसी तरह हैं, जिस तरह अंधों के लिये आइना"।
हद तो यह है कि, वे लोग भी किताबों के लिये लड़ते हैं, जो लोग कभी किताब नहीं पढ़ते हैं।
नहीं, किताबें बुरी नहीं हैं। हमारी "समझ" अच्छी नहीं है। हमारी चेतना का स्तर (level of perception) बहुत नीचे चला गया है। यह स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे कि, "भैंस के आगे बीन बजाय, भैंस करे पगुराय"...
किताबें मनुष्यों के लिए हैं। पहले हम मनुष्य तो हो जाएँ!!!
जब कोई गाड़ी बहुत गहरी खाई में गिर जाती है तो टोचन से नहीं निकलती। तब क्रेन ही उसे निकाल सकता है।
पतन के गर्त में जा चुकी मानवीय चेतना को ऊपर खींचने के लिये, प्रबल गुरुत्व (खींचने की ताकत) की आवश्यकता है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा (the Supreme Dynamic Consciousness) से अधिक गुरूत्त्व किसमें हो सकता है?
तो आइये हम शिव-शिष्य बनने का प्रयास करें।
इसके लिये, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र अत्यंत सहायक हैं।
1. दया मांगना:
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)
2. चर्चा करना:
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"
3. नमन करना:
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)
जब कोई गाड़ी बहुत गहरी खाई में गिर जाती है तो टोचन से नहीं निकलती। तब क्रेन ही उसे निकाल सकता है।
पतन के गर्त में जा चुकी मानवीय चेतना को ऊपर खींचने के लिये, प्रबल गुरुत्व (खींचने की ताकत) की आवश्यकता है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा (the Supreme Dynamic Consciousness) से अधिक गुरूत्त्व किसमें हो सकता है?
तो आइये हम शिव-शिष्य बनने का प्रयास करें।
इसके लिये, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र अत्यंत सहायक हैं।
1. दया मांगना:
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)
2. चर्चा करना:
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"
3. नमन करना:
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)

Gyanendra Ji.
ReplyDeleteSaheb kai baar kahte hain ki Guru ka message aata hai. Hun ye jaanna chaahte hain ki Iss message ko read kaise karen? Pahchaane kaise ki ye Guru ka msg hai. Jaise maan lijiye ki humaare man me koi sawaal chal raha hai, usko lekar bahut sare vichaar man me aa rahe. In sabme se kaun sa vichar ya jawaab Guru ka hai kaise pachaane? Guru raasta dikhaate hain to kaise samjhe ki kaun sa raasta maine decide kiya hai aur kaun sa Guru ne kahaa h? Jab bahut saare vikalp hon. Kripya bataayen ki Guru se aaye sandesh ko pechaane kaise? Kripyaa shighra bataayen, jaanne ki bahut utsuktaa hai.