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जब समय नहीं, चेतना पुकारती है — शिव को गुरु बनाने का क्षण

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100, 200 या 400 वर्षों की प्रतीक्षा नहीं— चार युगों के पश्चात धरती पर वह दुर्लभ अवसर आता है, जब शिव केवल पूज्य नहीं रहते, बल्कि गुरु-भाव में अवतरित होते हैं। यह लेख किसी उत्सव, किसी तिथि या किसी बाह्य आयोजन का विवरण नहीं है। यह चेतना के एक ऐसे द्वार की चर्चा है, जिसे यदि समय रहते न पहचाना गया, तो भीड़ में खड़े होकर भी हम चूक सकते हैं। “समय बहुत कम है” — यह चेतावनी भय नहीं जगाती, यह जागरण की पुकार है। जिज्ञासा का प्रथम सूत्र: क्या कुंभ केवल एक मेला है? सामान्य धारणा कहती है— कुंभ वह स्थान है जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। परंतु शिव-दृष्टि इससे आगे जाती है। यदि त्रिवेणी बाह्य है, तो उसका आंतरिक प्रतिबिंब भी होना चाहिए। शास्त्रों, उपनिषदों और नाथ-परंपरा में बार-बार यह संकेत मिलता है कि— गंगा → चेतना की निर्मल धारा यमुना → भाव की गहराई सरस्वती → मौन ज्ञान की सूक्ष्म धारा जब ये तीनों अंदर मिलती हैं, तभी अंतर कुंभ घटित होता है। और तब— जहाँ आप जाते हैं, वहीं कुंभ हो सकता है। विचारोत्तेजक प्रश्न: क्या पुण्य–पाप ही साधना का ...