ब्रह्मा विष्णु महेश
ब्रह्मा, विष्णु या महेश क्या हैं?
देव या देवी का क्या अर्थ है?
सूक्ष्म सत्ता को देव तथा सूक्ष्म शक्ति को देवी कहते हैं।
ईश्वर को त्रिगुण ब्रह्म भी कहा गया है, क्योंकि वो सृजन, पालन और संहार, तीनो कार्य कर सकते हैं।
इन्ही 3 गुणों को क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा इन 3 तरह की सूक्ष्म शक्तियों को सरस्वती, लक्ष्मी तथा काली कहा गया है।
इन सभी को धारण करने वाले को परब्रह्म परमेश्वर या शिव कहा गया है।
तस्वीरों को देखकर भ्रम होता है कि, इन देवों या देवियों का ऐसा स्वरुप है, जबकि तस्वीरें इनके गुणों को प्रदर्शित करने के लिए बनायी गयी थीं, न कि स्वरुप को।
ईश्वर का साकार रूप यह चराचर ही है, जिसमे हम और आप भी आते हैं।
इन बातों को अनुभव ज्ञान से ही समझ जा सकता है, जो केवल परमात्मा की दया से ही संभव है।
परमात्मा या शिव का गुरु भाव ही उनका दया भाव है, जो प्रसारित तो सबके लिए होता आ रहा है, लेकिन उसको ग्रहण वही कर सकता है, जो शिष्य भाव में है।
शिव को "अपना" गुरु बनाने के लिए, शिव-गुरु की दया से, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, वरेण्य गुरुभ्राता, महामानव, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से, 3 सूत्र दिए गए हैं...
देव या देवी का क्या अर्थ है?
सूक्ष्म सत्ता को देव तथा सूक्ष्म शक्ति को देवी कहते हैं।
ईश्वर को त्रिगुण ब्रह्म भी कहा गया है, क्योंकि वो सृजन, पालन और संहार, तीनो कार्य कर सकते हैं।
इन्ही 3 गुणों को क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा इन 3 तरह की सूक्ष्म शक्तियों को सरस्वती, लक्ष्मी तथा काली कहा गया है।
इन सभी को धारण करने वाले को परब्रह्म परमेश्वर या शिव कहा गया है।
तस्वीरों को देखकर भ्रम होता है कि, इन देवों या देवियों का ऐसा स्वरुप है, जबकि तस्वीरें इनके गुणों को प्रदर्शित करने के लिए बनायी गयी थीं, न कि स्वरुप को।
ईश्वर का साकार रूप यह चराचर ही है, जिसमे हम और आप भी आते हैं।
इन बातों को अनुभव ज्ञान से ही समझ जा सकता है, जो केवल परमात्मा की दया से ही संभव है।
परमात्मा या शिव का गुरु भाव ही उनका दया भाव है, जो प्रसारित तो सबके लिए होता आ रहा है, लेकिन उसको ग्रहण वही कर सकता है, जो शिष्य भाव में है।
शिव को "अपना" गुरु बनाने के लिए, शिव-गुरु की दया से, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, वरेण्य गुरुभ्राता, महामानव, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से, 3 सूत्र दिए गए हैं...
1. दया मांगना:
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)
2. चर्चा करना:
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"
3. नमन करना:
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)

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