Father and Teacher बाप और मास्टर

एक मास्टर साहब, जो प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते थे अपने बेटे के साथ स्कूल निकल रहे थे।
बेटा भी उन्हीं के स्कूल में पढ़ता था।

तभी मास्टर साहब की बीवी बोली कि, ब्लाउज का कपड़ा और नाप लेते जाइये, रास्ते में दर्जी को देते हुए चले जाइयेगा।

मास्टर साहब ने कपड़ा और नाप ले तो लिया लेकिन, जल्दीबाजी में दर्जी को देना भूल गए और स्कूल पहुँच गए।

स्कूल में जब पढ़ा रहे थे, तभी उनके बेटे को याद आया।

बोला, मम्मी ने जो ब्लाउज का कपड़ा दिया था, दर्जी को देने, आपने तो दिया ही नहीं।

मास्टर साहब बोले, जाते समय दे देंगे।

बेटा बोला, लेकिन मम्मी तो बोली थी कि, देते हुए जाइयेगा!

कोई बात नहीं, जाते समय दे देंगे!

बेटा- आते समय दे देते तो...

मास्टर साहब को गुस्सा आ गया।
बोले, अबे गधे, यहाँ मैं तुम्हारा बाप नहीं हूँ, शिक्षक हूँ...

तो जो शिव भगवान हैं, वही गुरु भी हैं। परमपिता भी और परमगुरु भी।

हम उनके सामने क्या बनकर जाते है, किस भाव में जाते हैं, परिणाम उसपर निर्भर करता है।

रह गयी बात कृपा और दया की,
तो जहाँ तक हम कुछ कर सकते हैं, वहाँ तक कृपा और जहाँ हम कुछ कर ही नहीं सकते, वहाँ दया की जरुरत होती है।

वही शिव, भगवान के रूप में कृपा और गुरु के रूप में दया करते हैं।

आवश्यकता है तो एक रिश्ता बनाने की। गुरु-शिष्य का रिश्ता। इसके लिये परमगुरु शिव की असीम दया से, 

इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, वरेण्य गुरुभ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से, शिव द्वारा प्रदत्त 3 सूत्र दिए गए हैं...

1. दया मांगना-
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)

2. चर्चा करना-
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"

3. नमन करना-
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)

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