The Supreme Dynamis सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा
हम सभी (कुछ अपवादों को छोड़कर) मानते हैं, कि ईश्वर है और हम सभी ने अपने परिवेश के आधार पर, ईश्वर की अवधारणाएं बना रखी हैं।
ईश्वर के प्रति हमारी अधिकांश धारणाएं पत्यारोपित हैं। यानि कि, बहरी ज्ञान पर आधारित हैं। ईश्वर की हमारी परिकल्पना सुनी और पढ़ी हुई बातों पर आधारित हैं।
हमने मान लिया है कि, ईश्वर के होने का वास्तविक अनुभव प्राप्त करना और उस परम सत्ता से संवाद कायम करना, केवल ऋषियों और नबियों का काम है और हम आमलोग इस अधिकार से वंचित हैं।
जबकि सारे ऋषियों या नबियों ने आजीवन यही प्रयास किया कि, हम सभी उस परम चेतना से जुड़कर अपना और सबका कल्याण कर सकें।
लेकिन हुआ ये कि हम ईश्वर के बजाय, उसके संवाददाताओं से जुड़ गये और तेरा मेरा करने लगे।
खैर; यहाँ सवाल है कि क्या हम और आप ईश्वर के वास्तविक स्वरुप का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
अगर हाँ, तो कैसे?
इस तरह का ज्ञान प्राप्त करके हमें मिलेगा क्या?
क्या ईश्वर से हमारा संवाद स्थापित हो सकता है?
क्या इस प्रक्रिया से हमारे लौकिक और पारलौकिक मनोरथ पूर्ण हो सकते हैं।
जहाँ तक मेरे खुद के अनुभव का सवाल है, तो उपरोक्त सारे सवालों का जवाब है.....
हाँ।
तो फिर कैसे?
उसी ईश्वर को अपना गुरु मान कर।
कैसे?
क्या कोई clues (सूत्र) हैं?
हाँ, हैं।
इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, वरेण्य गुरुभ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त, 3 सूत्र सहायक हैं।
1. दया मांगना:
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)
2. चर्चा करना:
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"
3. नमन करना:
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)
मेरे लिये तो ईश्वर सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चेतना (The Supreme Dynamis) हैं जो सभी सूक्ष्म और स्थूल रूप में प्रकट हुए हैं और जो सबका कल्याण करने की शक्ति रखते हैं। शिव का अर्थ ही होता है कल्याण करने वाला। "कल्याण", अर्थात समग्र समाधान।

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