Kathorta bhi Daya कठोरता भी दया

गुरु की कठोरता भी दया है!

गुरु आखिर कठोरता करते हैं तो क्यों? किसके हित में?
निश्चय ही शिष्य को दृढ़ बनाना ही गुरु की कठोरता का उद्देश्य होगा।

वास्तव में गुरु का दयाभाव ही गुरुभाव है। जो प्रतीत होता है कि, कठोरता है, वह कठोरता नहीं दया ही है। क्योंकि इस कठोरता का परिणाम अत्यंत सुन्दर होता है। हालाँकि तात्कालिक रूप से यह कष्टकर लग सकता है।

एक बात तो निश्चित है कि, परीक्षा लेने से पूर्व, शिष्य को परीक्षा के योग्य बनाया जाता है, जो बिना गुरुदया के संभव ही नहीं है। कोई भी गुरु शिष्य की उतनी ही परीक्षा लेते हैं, जितनी के लायक शिष्य को समझते हैं। ये अलग बात है कि, शिष्य को अपनी योग्यता का तबतक पता नहीं चलता है, जबतक वह परीक्षा की घड़ियों से सफलता पूर्वक निकल नहीं जाता है।

आखिर पास भी तो गुरु ही करवाते हैं। यह भी तो गुरुदया ही है।

उससे भी पहले अगर शिव-गुरु की बात की जाय तो, शिव का शिष्य बनना ही संभव नहीं है, अगर गुरु दया नहीं करें। परीक्षा तो शिष्य की न होगी!

तो आइये हम शिव-शिष्य बनने का प्रयास करें।

इसके लिये, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र सहायक हैं।

1. दया मांगना-
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)

2. चर्चा करना-
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"

3. नमन करना-
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)

Comments

  1. Gyanendra Ji, aap Saheb ke karib rahte hain shaayad. Meri ek jigyasa ka samadhaan karen. Kya jigyasa rakhne ki anumati hai?

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  2. प्रणाम
    जरूर जिज्ञासा कीजिये
    गुरू की दया से कोशीश करूँगा
    वैसे साहबश्री के करीब तो सभी गुरू भाई-बहन रहते हैं

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  3. dhanyawaad.
    main shiv ko bahut maanti hoon shuru se aur shiv ko apna guru banaya 6 saal pahle. koi swaarth nahi tha shiv se... kuchh paane ke liye nahi judi thi sirf prem tha Shiv se. aur mere jeevan ki jitni samasya thi wo bina kahe guru ki daya se swatah thik hoti gayin aur badi badi cheejen v guru ne diya. main guru daya se gurukaarya v bahut ki. ghar ghar jaa kar v. lekin pichhle 1.5 saal se mujhe aalas ho gya aur gurukaarya dheere dheere band ho gaya... namah shivaay v chhut gaya... sirf yaad raha ki shiv mere guru hain bas. lekin abhi mai achaanak ek bahut badi musibat me ghir gayi hun... jaise jeevan ke sabse bade kasht ne mujhe gher liya hai. aise me mujhe guru yaad aaye aur mai fir se guru kaarya shuru ki hoon par iss baar man me swaarth hai. kuchh paane ki ikshaa se jaise waapas aayi hun. pahle aisa nahi tha. prem to abhi v hai shiv se par mera ye kasht mera swarth haawi ho jaa raha hai mujh pe.
    mai aapse ye puchhna chaahti hun ki kya guru kaarya band karne ke kaaran guru ne mera saath chhor diya tha? ya kya wo mujhe fir se apnaayenge? mere jeevan ka ye sabse bada kasht door karenge?

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    1. जहाँ तक मुझे लगता है, गुरु कभी शिष्य को नहीं छोड़ते। जब छोड़ते ही नहीं तो फिर से अपनाने का सवाल ही नहीं उठता।
      जिंदगी की राह में अच्छी बुरी स्थितियां आती रहती हैं और दुनियां में कोई भी मनुष्य इससे बच नहीं सकता। साहबश्री भी कहते हैं कि, स्वयं शिव भी शरीर में आएंगे, तो उन्हें दुःख उठाना ही पड़ेगा। यही संसार का नियम है।
      गुरु शॉक-अब्सॉर्बर का काम करते हैं। जब भी बुरी सड़क आती है गुरू की दया से झटके कम लगते हैं।
      रह गया सवाल गुरु कार्य से दूर होने का तो यह भी गुरू के हाथ में ही है।
      ऐसा नहीं है कि हम आप गुरू कार्य करते हैं तो बदले में हमारे लौकिक कष्ट दूर होते हैं। शिव गुरू की चर्चा शिष्य भाव के जागरण की अनुपम विधा है और इसका उद्देश्य भी यही है।
      कहा गया है कि गुरू की दया अहैतुकि होती है, अर्थात् इसका कोई कारण नहीं होता।
      सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का आना और जाना लगा रहता है।
      गुरू हमें इनसे लड़ने की समझ और शक्ति देते हैं।
      हाँ एक बात और, दुःख कोई ख़राब चीज नहीं है। जितना हम दुःख में पाते हैं उतना सुख में नहीं। अगर दुःख की वजह से ही सही, आप पुनः गुरू की शरण में आ गयी हैं, तो आ तो गयी हैं। यह भी गुरू की दया ही है।
      याद रखिये, ये भी गुजर ही जायेगा और गुरु की दया से इसका अहसास कम हो जाएगा।
      शायद ये होना भी शिष्य के हित में ही था...

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    2. sabse pahle to samay dene ke liye bahut bahut dhanyawaad.
      aapne sahi kahaa ki mujhe waapas apne paas bulana v guru ki hi daya hai. waapas aane ke baad muje ehsaas hua ki mai pichhle kuchh mahine kahaan kho gayi thi.
      kripya ek baat aur bataaiye... guru se koi laukik daya maangna humara adhikaar to hai na? swaarth to nahi? koi badi mahattwakanchha nahi balki ek genuine jaruri laukik cheej ki daya maangna humaara adhikaar hai na? mera man hota hai ki guru ko pakad ke roun. abhi guru ke siwa koi mere paas nahi hai jo mujhe samjhe. mai kaise guru ki daya paane ke laayak banu?

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  4. क्यों नहीं मांगेंगे???
    और सुनता कौन है?
    जिससे मिलता है, उसी से न माँगा जायेगा?

    हाँ साथ में यह भी दया मांगना है कि, आप जो मुझसे चाहते हैं, वो भी मैं कर सकूँ।

    शिव-गुरु की दया से शिष्य के लौकिक और पारलौकिक दोनों मनोरथ सिद्ध होते हैं।

    एक बात और
    कभी कभी हम जिद पर अड़े रहते हैं कि हमें फलाना चीज ही चाहिये, जबकि गुरू हमें कुछ और ही देना चाहते हैं, जो हमारे हित में हो।

    जो शिष्य के हित में नहीं, वो गुरु कभी नहीं दे सकते।

    इसलिये गुरु से मार्गदर्शन की अपेक्षा भी रखनी चाहिये।

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