Who May Be A Guru गुरु कौन हो सकते हैं
गुरु वही हो सकते हैं,
जिनमें गुरूत्त्व हो।
गुरु का एक अर्थ भारी भी होता है।
जो गुर (रहस्य) सिखला दे,
जिसके पास ज्ञान है,
तो ईश्वर जो कि अंर्तयामी हैं,
वैसे भी गुरु को भगवान जैसा कहा गया है।
एक ही व्यक्ति अलग अलग भूमिकाओं में पिता, पुत्र, मामा, चाचा, शिक्षक इत्यादि हो सकते हैं।
।।या शक्ति, शिवस्य शक्ति।।
परमात्मा की इच्छाओं को आदेश मानकर, उसपर चलने की कोशीश करना ही शिव-शिष्यता है।
इसके लिये अपनी चेतना को सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा से जोड़ने की जरुरत है।
उसी तरह ईश्वर के गुरू स्वरुप से जुड़ने के लिये भी, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र सहायक हैं।
1. दया मांगना-
2. चर्चा करना-
3. नमन करना-
करके देखा जाय। मुझे बहुत ही सुन्दर परिणाम मिले हैं।
जिनमें गुरूत्त्व हो।
ईश्वर से अधिक गुरूत्त्व किसमें हो सकता है?
गुरु का एक अर्थ भारी भी होता है।
जो सब पर भारी है,
उसे ही तो ईश्वर कहते हैं।
जो गुर (रहस्य) सिखला दे,
उसे ही गुरु कहते हैं।
जगत के सारे रहस्यों के ज्ञाता तो केवल ईश्वर ही हैं।
जिसके पास ज्ञान है,
वही गुरु हो सकते हैं।
तीनों कालों का ज्ञान रखनेवाले,
सर्वज्ञ तो ईश्वर ही हैं।
तो ईश्वर जो कि अंर्तयामी हैं,
सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा हैं,
अंतर्ज्ञान और बाह्यज्ञान दोनों के ज्ञाता और दाता हैं,
निश्चय ही गुरु भी हैं।
वैसे भी गुरु को भगवान जैसा कहा गया है।
जो भगवान जैसा है,
अगर वह गुरु है,
तो स्वयं भगवान गुरु क्यों नहीं?
एक ही व्यक्ति अलग अलग भूमिकाओं में पिता, पुत्र, मामा, चाचा, शिक्षक इत्यादि हो सकते हैं।
तो वह घट घट वासी, अविनाशी, विश्वरूप, परमात्मा, जो अनंत रूपों में हैं,
उनका एक रूप गुरु भी है।
।।या शक्ति, शिवस्य शक्ति।।
शक्तियां जो भी हैं, ईश्वर की शक्तियां हैं।
परमात्मा की इच्छाएं ही उनकी शक्तियां हैं।
परमात्मा की इच्छाओं को आदेश मानकर, उसपर चलने की कोशीश करना ही शिव-शिष्यता है।
परमात्मेच्छा को समझने की पात्रता को बढ़ाया जा सकता है।
इसके लिये अपनी चेतना को सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा से जोड़ने की जरुरत है।
ठीक उसी तरह, जिस तरह हम अपने स्मार्टफोन को इंटरनेट से कनेक्ट करते हैं।
इसके लिये हमें 1.डायल करना, 2.बैलेंस रिचार्ज करना और 3.बैटरी चार्ज करना पड़ता है।
उसी तरह ईश्वर के गुरू स्वरुप से जुड़ने के लिये भी, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र सहायक हैं।
1. दया मांगना-
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)
2. चर्चा करना-
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"
3. नमन करना-
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)
करके देखा जाय। मुझे बहुत ही सुन्दर परिणाम मिले हैं।

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