दुःख का कारण
मेरी समझ से है-
अनुचित अपेक्षा।
जिसका कारण है,
समझ की कमी।
समझ की कमी।
उचित-अनुचित का निर्णय करने के लिये,
विवेक या विकसित चेतना या समझ,
की जरुरत है।
विवेक या विकसित चेतना या समझ,
की जरुरत है।
भौतिक गुरु ज्ञान देने की कोशीश कर सकते हैं,
लेकिन ग्रहण करने की क्षमता तो केवल शिव-गुरु की दया से ही मिलती है।
लेकिन ग्रहण करने की क्षमता तो केवल शिव-गुरु की दया से ही मिलती है।
ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता ही समझ है।
हमारे आपके पास जितनी भी समझ (perception) है, उसका एक मात्र स्रोत है, सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा (the Supreme Dynamic Consciousness), जिसे हम गॉड, अल्लाह, शिव या ईश्वर कहते हैं।
हमारी आपकी चेतना का स्रोत होने की वजह से गुरू हैं ही।
जरुरत है तो सिर्फ एक सम्बन्ध जोड़ने की। एक रिश्ता, गुरू शिष्य का रिश्ता।।
परमगुरू शिव की दया से, साहबश्री हरीन्द्रानंदजी के माध्यम से, मानवजाति को 3 सूत्र मिले हैं, जिनकी सहायता से हम और आप शिव-शिष्य बन सकते हैं।
1. दया माँगना-
"हे शिव आप मेरे गुरू हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये"। (मन ही मन)
"हे शिव आप मेरे गुरू हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये"। (मन ही मन)
2. चर्चा करना-
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "मेरे गुरू शिव हैं, आपके भी हो सकते हैं"।
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "मेरे गुरू शिव हैं, आपके भी हो सकते हैं"।
3. नमन करना-
अपने गुरू को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो "नमः शिवाय" का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः और छोड़ते समय शिवाय)
अपने गुरू को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो "नमः शिवाय" का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः और छोड़ते समय शिवाय)
परीक्षा अपेक्षित।
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