मूल कारण

 

।।प्रणाम।।

आज के परिवेश में तमाम समस्याओं का मूल कारण है, मानवीय चेतना का अधःपतन, जिसकी वजह से लोग स्वार्थी हो गए हैं।

मानवीय चेतना के पुनरुत्थान के लिए प्रबल "गुरूत्व" की आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार जैसे किसी गहरी खाई में गिर चुके किसी वाहन को निकालने के लिए क्रेन की आवश्यकता होती है, टोचन की नहीं।

गुरूत्व का अर्थ ही होता है, "खींचने की ताकत"।

"गुरु वही हो सकते हैं जिनमें गुरूत्व हो"।

ईश्वर अर्थात "सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा" से ज्यादा गुरूत्व किसमें हो सकता है?

शिव गुरु की शिष्यता परिणामदायी है, यह प्रायोगिक तौर पर सिद्ध हो चुका है।

सतही तौर पर नहीं, स्थायी समाधान के लिए, समस्या के मूल कारण को दूर करने हेतु...

"आइये भगवान शिव को 'अपना' गुरु बनाया जाय"...

3 सूत्रों की सहायता से:

1. दया मांगना: "हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)।

2. चर्चा करना: दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "आइये भगवान शिव को 'अपना' गुरु बनाया जाय"।

3. नमन करना: अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो "नमः शिवाय" का प्रयोग कर सकते हैं (मन ही मन: साँस लेते समय नमः, छोड़ते समय शिवाय)।

Comments

  1. हरी ॐ नमः शिवाय 🙏🔱🙏

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  2. बहुत सुंदर लेखनी भैया प्रणाम

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