Why the God as Guru शिव ही गुरु क्यों



शिव ही गुरु क्यों?
क्या मनुष्य गुरु नहीं हो सकते?

बिलकुल हो सकते हैं। यहाँ तक कि, हर मनुष्य गुरु भी है और शिष्य भी। शिव को अपना गुरु बनाने का मतलब, बाँकी गुरुओं की उपेक्षा करना नहीं है। उलटे जगद्गुरु को अपना गुरु बनाने से जगत् का हर चराचर गुरु हो जाता है, चाहे वह स्थूल हो, सूक्ष्म हो, या सूक्ष्मातिसूक्ष्म।

लेकिन मनुष्य को गुरु बनाने के लिये, पहले से भी पात्रता की आवश्यकता होती है। जैसे कि, अगर किसी मेडिकल कॉलेज में पढ़ना है, तो पहले से ही 10+2 पास होना चाहिये, बायोलॉजी  से और अगर इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ना है मैथमेटिक्स से। साथ में फिजिक्स, केमिस्ट्री, इंग्लिश इत्यादि।

यही कारण है कि, जितने भी शरीरधारी मनुष्य प्रसिद्ध सद्गुरु हुए, उनके गिने चुने ही शिष्य प्रसिद्ध हुए, ज्यादतर मामलों में 1 ही।

जैसे कि, रामानंद स्वामी के 1 कबीरदास या रामकृष्ण परमहंस के विवेकानंद। क्योंकि पूर्व-पात्रता वाले शिष्यों का मिलना, अत्यंत दुर्लभ बात है।

बात जब आध्यात्मिक गुरु की आती है, तो गुरु मिलना ही दुर्लभ है और योग्य शिष्य मिलना तो और भी दुर्लभ।

भौतिक गुरु भौतिक ज्ञान दे सकते हैं, लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान के लिये तो आध्यात्मिक गुरु ही करना पड़ेगा।
अध्यात्म के मामले में बाह्य गुरु को भी आंतर गुरु होना पड़ता है, अर्थात् बाहरी गुरु को भी अपने योगबल से शिष्य के अंतर्मन में प्रवेश करना होता है।

इसीलिये कहा गया है कि गुरु शिष्य के तल पर उतरते हैं और शिष्य की चेतना का परिमार्जन कर उसके व्यक्तित्त्व का सर्वोत्तम पक्ष उजागर करते हैं।

शिव को अपना गुरु बनाने के लिये, किसी भी पूर्व पात्रता की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि शिव-गुरु हर तल पर मौजूद हैं। वो सबसे ऊपर भी हैं और सबसे नीचे भी। वो सबसे पहले भी हैं और आखिरी भी। वो अंदर भी हैं और बाहर भी।

इसीलिये शिव को जगद्गुरु या जन जन के गुरु कहा गया है।

आप जो भी हैं, जिस स्थिति में भी हैं, शिव को "अपना" गुरु बना सकते हैं।

इसके लिये, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र सहायक हैं।

1. दया मांगना-
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)

2. चर्चा करना-
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"

3. नमन करना-
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)

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