सफलता का पैमाना



 सफलता का पैमाना यह नहीं कि इस जगत से आपने कितना लिया है, बल्कि सफलता का पैमाना यह है कि इस जगत को आपने कितना दिया है।


हालांकि देनेवाले तो केवल ईश्वर हैं, लेकिन क्या हममें प्रदाता बनने की, माध्यम बनने की चाहत है?

क्या हम लेने की जगह देने को उत्सुक हैं?

या केवल दुनियाँ की नजर में स्वयं को सफल सिद्ध करने के लिए, इस जगत का अधिकाधिक दोहन और शोषण करने की ही प्रवृत्ति है?

लोगों से प्रशंसा पाने के लिए दिखावा वही करता है, जिसकी अपनी अंतरात्मा उसकी प्रशंसा नहीं करती।

आपकी अंतरात्मा आपकी प्रशंसा तब करती है, जब आप बिना किसी अपेक्षा के, बिना किसी लोभ के, यहाँ तक कि बिना किसी की प्रशंसा पाने की चाहत लिए, आप कोई ऐसा कार्य करते हैं जो लोकहित में हो।

अब लोकहित भी तो जगदीश्वर ही कर सकते हैं! समाधान अर्थात कल्याण करने का सामर्थ्य तो केवल ईश्वर में है! इसीलिए तो उन्हें शिव कहा गया है!

तो हम आप केवल इतना ही करने का प्रयास कर सकते हैं कि लोगों का जुड़ाव उस परमसत्ता से हो सके। इसके लिए भी उस परमगुरु की दया की आवश्यकता है।

।।प्रणाम।।

"आइये भगवान शिव को 'अपना' गुरु बनाया जाय"...
3 सूत्रों की सहायता से:

1. दया मांगना:
"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)।

2. चर्चा करना:
दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "आइये भगवान शिव को 'अपना' गुरु बनाया जाय"।

3. नमन करना:
अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो "नमः शिवाय" का प्रयोग कर सकते हैं (मन ही मन: साँस लेते समय नमः, छोड़ते समय शिवाय)

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