क्या सचमुच समझ और चेतना का विकास दुख बढ़ा देता है?

🌿❓ क्या सचमुच समझ और चेतना का विकास दुख बढ़ा देता है?

अक्सर देखा गया है कि जैसे-जैसे मनुष्य की समझ विकसित होती है, उसकी चेतना का स्तर ऊपर उठता है, वैसे-वैसे वह और अधिक दुखी और चिंतित दिखने लगता है।
परंतु यह दुख अपने लिए नहीं होता—यह दुख और चिंता उन लोगों के लिए होती है, जो अभी भी चेतना के अधःपतन में डूबे रहते हैं।

✨ जब चेतना ऊपर उठती है, तब केवल बुद्धि ही नहीं, बल्कि दयाभाव और प्रेम का स्तर भी ऊपर उठने लगता है। यही दया हमें विचलित करती है, क्योंकि हम चाहते हैं कि लोग समझें, जागें, सुधरें—लेकिन जब वे समझने की स्थिति में नहीं होते, तब हमारी असमर्थता का बोध हमें दुखी कर देता है।

👉 असल में समस्या यहाँ है कि हम स्वयं को समझ देने वाला मान लेते हैं।
जबकि उपाय यही है कि —
लोगों को हमारी समझ से नहीं, बल्कि समझ के मूल स्रोत से जोड़ना चाहिए।
यानी हमें किसी को अपनी रोशनी दिखाने के बजाय, उन्हें उस असीम ज्योति तक ले जाने का प्रयास करना चाहिए जहाँ से सभी को अपनी-अपनी समझ स्वतः प्राप्त हो सकती है।

🌸 यही मार्ग है—जहाँ हमारी चिंता कम होगी और दूसरों की चेतना भी स्वतः ऊपर उठने लगेगी।
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।।प्रणाम।।

आज के परिवेश में तमाम समस्याओं का मूल कारण है, "मानवीय चेतना का अधःपतन", जिसकी वजह से लोगों में समझ की कमी हो गई है।

मानवीय चेतना के पुनरुत्थान के लिए प्रबल "गुरूत्व" की आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार जैसे किसी गहरी खाई में गिर चुके किसी वाहन को निकालने के लिए क्रेन की आवश्यकता होती है, टोचन की नहीं।

गुरूत्व का अर्थ ही होता है, "खींचने की ताकत"।

"गुरु वही हो सकते हैं जिनमें गुरूत्व हो"।

ईश्वर अर्थात "सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा" से ज्यादा गुरूत्व किसमें हो सकता है?

शिव गुरु की शिष्यता परिणामदायी है, यह प्रायोगिक तौर पर सिद्ध हो चुका है।

सतही तौर पर नहीं, स्थायी समाधान के लिए, समस्या के मूल कारण को दूर करने हेतु...

"आइये भगवान शिव को 'अपना' गुरु बनाया जाय"...

3 सूत्रों की सहायता से:

1. दया मांगना: "हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)।

2. चर्चा करना: दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "आइये भगवान शिव को 'अपना' गुरु बनाया जाय"।

3. नमन करना: अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो "नमः शिवाय" का प्रयोग कर सकते हैं (मन ही मन: साँस लेते समय नमः, छोड़ते समय शिवाय)।

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