ध्यान क्या है?

ध्यान क्या है?

जब आप कहते हैं, ध्यान से सुनो, तो आपका मतलब ये नहीं होता कि, आसन लगाकर बैठ जाओ और आँख बंद कर लो। उल्टे ध्यान से सुनने का मतलब है, आँखों से आँखें मिलाकर बात सुनो।

मैं आँख बंद करके बैठा हूँ और मेरा ध्यान मेरे पुत्र पर या पत्नी पर या संसार में और कहीं भटकता रहता है, तो क्या इसे ध्यान कहेंगे?

वास्तव में ध्यान का सम्बन्ध चर्चा से है। हम जिसकी चर्चा करते हैं, हमारा ध्यान तुरत उसपर जाता है।
उदहारण के लिए अगर हम सचिन तेंदुलकर की चर्चा करेंगे तो हमारा ध्यान तुरत सचिन तेंदुलकर पर जायेगा।
अगर मैं दिनभर राजनीति की चर्चा करूँगा, तो अकेले में भी मेरा ध्यान उन्ही बातों पर जायेगा, जिनकी चर्चा मैं बार बार करता हूँ।

इतना ही नहीं जिस विचार की चर्चा हम बार बार करते हैं उस विचार की आवृत्ति हमारे मन में बार बार होती है और वह विचार घनीभूत होकर भाव में बदल जाता है, जो अधिक ठोस होता है और जल्दी नहीं टूटता।

निष्कर्ष ये कि हम जिस चीज पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, हमें उस चीज या बात या विचार की चर्चा बार बार करनी पड़ेगी, तभी जब हम आँख बंद करके भी बैठेंगे, तो ध्यान उसपर जायेगा, जिसपर हम ले जाना चाहते हैं।

अब प्रश्न यह है कि कौन है, जो हमारे ध्यान के योग्य (आराध्य) है?

किसके ध्यान से हमारी चेतना का परिमार्जन और विकास होगा?

किससे जुड़कर हमारी हर जिज्ञासा का समाधान हो सकता है?

कौन है जो हमारी आपकी चेतना का गुरु हो सकता है?

तो जो स्रोत है हमारी आपकी चेतना का, जो परम चेतना है, वही हमारा गुरु है।
उससे जुड़कर ही हम जान सकते हैं, मेरे लिए क्या सही है।
उस परम चेतना से "मनसा वाचा कर्मणा" जुड़ना पड़ेगा।

कैसे?

क्या कोई सूत्र हैं?

इसके लिये, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र सहायक हैं।
1.दया माँगना:

हे शिव, आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये।

2.चर्चा करना:

दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं।

3.नमन करना:

अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करना। चाहें तो "नमः शिवाय" का प्रयोग कर सकते हैं।
(सांस लेते समय नमः, छोड़ते समय शिवाय, मन ही मन)

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