स्वास्थ्य और चर्चा

स्व में स्थित होना ही स्वास्थ्य है।

भू भुवः स्व
स्थूल सूक्ष्म कारण

इस प्रकार स्व का अर्थ हुआ वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा जो मेरे होने का कारण अथवा मेरा मूल स्वरुप है।
अब अगर मेरा ध्यान स्थूल पर है तो मैं स्व में स्थित अर्थात् स्वस्थ नहीं हूँ।

आज तथाकथित आधुनिक विज्ञान का सारा ध्यान "शव" पर ही है, "शिव" पर नहीं।
स्थूल पर ही है सूक्ष्म पर नहीं।

महामानव हैनिमैन ने सूक्ष्म शरीर के महत्त्व को पुनः प्रतिष्टित किया।
सूक्ष्म दवाओं के प्रयोग द्वारा सूक्ष्म शरीर को व्यवस्थित करने का प्रयास प्रारम्भ हुआ।
हैनिमैन साहब मानव जाति के इतिहास के मील के पत्थर साबित हुए।

अब देखिये अगर कोई मरीज अपनी बीमारी को पकड़ लिया है और हर आने जाने वाले के साथ अपनी बीमारी की ही चर्चा करता है, तो उसका ध्यान हमेशा बीमारी पर ही बना रहेगा और वह रोगस्थ रहेगा, स्वस्थ नहीं।

उपाय?
हमें अपना ध्यान रोग से हटा कर स्व पर ले जाना होगा।

कैसे?
ध्यान का सम्बन्ध चर्चा से है।

अगर हम समस्याओं की ही चर्चा में लगे हैं तो हमारा ध्यान समाधान पर कभी नहीं जा सकता।
हम जिस चीज की चर्चा करते हैं, हमारा ध्यान उस चीज पर जाता ही है।

इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, साहब श्री हरीन्द्रानंद ने कहा कि लोगों के बीच शिव गुरू चर्चा करो।

स्वाभाविक है ध्यान शिव (सूक्ष्मातिसूक्ष्म परम चैतन्यात्मा) पर जायेगा जो हमारे आपके अंदर भी कारण शरीर अर्थात् "स्व" के रूप में मौजूद हैं।

शिव का अर्थ ही है कल्याण अर्थात् समग्र समाधान।

इस प्रकार हम समस्या से हटकर समाधान की ओर बढ़ते जाते हैं।

सहबश्री हरीन्द्रानंद भी मानव जाति के इतिहास के मील के पत्थर साबित हुए।

अफ़सोस कि दुनिया महापुरुषों को तब पहचानती है, जब वे दुनियां में नहीं रहते।

कुछ लोग सोचते होंगे, ये होमियोपैथी का चिकित्सक, हमेशा शिव गुरु की चर्चा क्यों करता रहता है!
इसमें सभी समस्याओं का समाधान है और रोग भी उनमे से एक है।

शिव को "अपना" गुरु बनाने के लिये, शिव-गुरु की दया से, मानव-जाति को, इस कालखंड के प्रथम शिव-शिष्य, महामानव, वरेण्य गुरु-भ्राता, साहबश्री हरीन्द्रानंद जी के माध्यम से प्रदत्त 3 सूत्र सहायक हैं।

1. दया मांगना:

"हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिये" (मन ही मन)

2. चर्चा करना:

दूसरों को भी यह सन्देश देना कि, "शिव मेरे गुरु हैं, आपके भी हो सकते हैं"

3. नमन करना:

अपने गुरु को प्रणाम निवेदित करने की कोशीश करना। चाहें तो नमः शिवाय का प्रयोग कर सकते हैं। (मन ही मन, सांस लेते समय नमः तथा छोड़ते समय शिवाय)

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