क्या सचमुच प्रेम का असली स्वरूप सिर्फ शिवभाव से ही प्रकट होता है?
✨ क्या सचमुच प्रेम का असली स्वरूप सिर्फ शिवभाव से ही प्रकट होता है? सोचिए… हम रोज़ प्रेम की बातें करते हैं, किसी से लगाव, किसी से अपनापन जताते हैं, लेकिन क्या यह सब सचमुच प्रेम है या सिर्फ मोह? 👉 यदि किसी का प्रेम सीमित है—जाति, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र या रिश्ते की सीमाओं तक—तो वह प्रेम नहीं, सिर्फ स्वार्थ है। सच्चा प्रेम वही है, जो सबको समाहित कर सके। और यह तभी संभव है जब हृदय में शिवभाव जाग्रत हो। क्योंकि— 🌿 जिसे शिव से प्रेम है, उसे सब से प्रेम है। 🌿 जिसे शिव से प्रेम नहीं, उसे किसी से प्रेम नहीं। जहां शिवभाव है, वहां भेदभाव नहीं। और जहां भेदभाव है, वहां शिवभाव नहीं। शिव हमें यह सिखाते हैं कि – 🕉 जो शिव का है, वह सबका है। 🕉 और जो सबका है, वह शिव का है। तो आइए, प्रेम की संकीर्ण परिभाषाओं से ऊपर उठकर शिवभाव को अपनाएं— क्योंकि यही वह दृष्टि है जो भेद मिटाती है, सबको जोड़ती है और प्रेम को उसके वास्तविक स्वरूप में प्रकट करती है। ।।प्रणाम।। आज के परिवेश में तमाम समस्याओं का मूल कारण है, "मानवीय चेतना का अधःपतन", जिसकी वजह से लोगों में समझ की कमी हो गई है। मानवीय चेतना के पु...